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"विलेन ही है उत्तर प्रदेश का वास्तविक लौह स्तंभ"
देखा जाए तो जिस प्रकार अपराध का दास्ताँ दिन प्रतिदिन सुनने को मिलता आ रहा है , ये कहते हुए जरा सा भी संकोच नहीं होगा की उत्तर प्रदेश ही है असल अपराधीयों का गढ़
दुनिया से सरोकार होकर जब आपराधियों को ये आवाम अपना लिडर , हिरो और आइडल मानने लगते है और हर एक जगह ढिंढोरा पिटते हुए उनका गुणगान और बखान करते हैं और उनके प्रत्येक कामों का दास्ताँ कुछ इस प्रकार सुनाते हैं मानों इनको अपराध जगत का लिडर पुरस्कार से नवाज देना चाहिए , जनता इन जैसे खुंखार अपराधीयों की कहानी आपको इस तरह सुनाएगी की ये ही है असली कर्मवीर और वही अपराधी आपको बतौर हिरो के समान नजर आने लगेगा.
युवाओं की बात की जाए तो आज प्रत्येक युवा माफिया बनने की कगार पे खड़ा है असलहों की इस प्रकार बखान ये करते हैं जैसे आम इसानों के घरों में दाल चावल बनते है ये युवा दरअसल कट्टा और पिस्टल से निचे बात ही नहीं करते हैं क्योंकि जिस प्रकार ये अपराधीयों और माफियों की कहानी सुनते आ रहे हैं उनसे से प्रेरित तो होते ही है एवं उनके कामों को गौरवान्वित भी मानते हैं इसलिए आजकल का हर एक युवा माफिया बनने की कगार पर खड़ा है.
आइये जिक्र करते हैं कुछ ऐसे खुंखार अपराधीयों की जो माफिया से लेकर माननीय तक का सफर ज्ञात कर चुके हैं.
1.पूर्वांचल का सबसे बड़ा डॉन, जो चुनाव से पहले हो जाता है सुपरएक्टिव चाहे सियासत हो या फिर ठेकेदारी, हर जगह बाहुबली किसी ना किसी तरह से शामिल हैं. यूं तो पूर्वांचल में कई माफिया गैंगस्टर रहे हैं. लेकिन सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा को यूपी का सबसे बड़ा माफिया डॉन कहा जाता है.. दाउद इब्राहिम से लेकर देश विदेश के बड़े बड़े माफियाओं से इनका तालुक रहा है आज भी लोग इनका लोहा मानते हैं , उम्रकैद की सजा काट रहे इस माफिया ने माननीय से भी उपर तक का सफर तय कर लिया है.
2.पूर्वांचल के माफ़िया नेताओं की कहानी हिस्ट्रीशीटर माफ़िया नेता बृजेश सिंह के बिना पूरी नहीं होती. कहते हैं पिताजी की मौत का बदला लेने के नियत से अपराध की जगत में कदम रखा उसके बाद तमाम लाशें तमाम कत्ल हुए और आज एक प्रसिद्ध नेता के तौर पर उन्हें लोग पुजते है.
2.अब आप श्री प्रकाश शुक्ल को ही ले लिजीए , श्री प्रकाश शुक्ल खुंखार अपराधी और माफ़िया के नाम से मसहूर , जिसे बडे़ बडे़ नेता राजनेता अपने विरोधियों की सुपारी सौपते थे. जिस कारण पहली बार एसटीएफ को गठन करना पड़ा. गाजियाबाद के एक मुठभेड़ में पुलिस द्वारा मारा गया.
3.मुन्ना बजरंगी नाम तो सुना ही होगा कहते हैं 250 रुपये का तमंचा लेकर अपराध की दुनिया में कदम रखने वाला ये बेहद मसहूर माफिया .प्रेम प्रकाश सिंह नाम के इस प्राणी को "मुन्ना बजरंगी" का उपनाम मिला ये नाम केवल अपराध जगत तक रह गया . इनके नाम से ही सारे काम होते थे दरअसल अपराध जगत में इनके नाम की तूती बोलती थी
4.रॉबिनहुड माफिया के नाम से प्रसिद्ध मुख्तार अंसारी इनके आशिर्वाद कहे या फिर कह ले की इनकी इजाजत के बगैर कोई काम सम्भव नहीं हो सकता विशालकाय फैन फालोवर्स है इनके.
उत्तर प्रदेश का वर्णन अगर एक शब्द में किया जाए तो वो है "भौकाल" और भौकाल के आगे सब कुछ बेजायका है अपराधीयों का भौकाल हमेशा से अव्वल रहा है चाहे जेल की बात करे या जेल के बाहर की. आत्मसमर्पण करने के बाद ये अपराधी जेल में रहकर अपना नेटवर्क प्रबल बना लेते हैं. जिसे मात देने में स्वयं पुलिस भी डगमगा जाती है.
जब तक आवाम इनको अपना लीडर आइडल एवं बतौर हीरो के तौर पर देखेगा तब तक न जाने कितने ऐसे माफिया पैदा होंगे और फ्यूचर की कई नस्लें विकास दुबे जैसे खूंखार अपराधी की राह पर होंगी
धन्यवाद ??
"मुफलिस का कानून"
अगर संविधान के अनुरूप सभी भारतीय एकसमान हैं और कानून भी सभी के लिए एकसमान है , तो फिर सारे राजनियम भला क्यों झेले हमारे ये मुफलिस . अपराध जगत से हटकर अगर बात करे तो यही अवसान होता है कि सारे तौर तरिके नियम कानून बस इन लाचारों के लिए ही बने है , क्योंकि न तो इनके नेटवर्क तगड़े होते हैं और ना ही ये मुद्रा से सम्पूर्ण होते हैं.
फिर क्या है तमाम आपदा राहों में और सबका नतीजा फक़त फुस्स आता है.
वही रईसों की बात किया जाए तो उनके लिए कोई नियम कानून मायने नहीं रखता उनके नेटवर्क हर इलाकों में प्रबल है और जहा नहीं है वहा पैसा फेक तमाशा देख का उसूल लग जाता है , सत्ता किसी की भी हो पर झेलना तो सिर्फ इनको ही है.
शिक्षालय है या जुर्मानालय आरंभ करते हैं इल्म से, स्कूलों और कॉलेजों में जिस तत्परता से फीस वसूल की जाती है, शायद मालगुजारी भी उतनी सख्ती से नहीं वसूल की जाती। या तो फीस दीजिए, या नाम कटवाइए, फीस न दी तो नाम कट जाता है। गरीबों के लड़के स्कूल छोड़कर भाग जाएं शिक्षा के नाम पर मशहूर प्राइवेट स्कूल उनके नशिब में नहीं और प्राथमिक विद्यालयों की शिक्षा तो बेजोड़ है ही , तो अफसर और डाक्टर वही बने जो पैसों से भरपूर है इल्म के नाम पर इल्जाम है ये कानून व्यवस्था जो लाचारों से पैसे वसूलते आ रहे हैं. आखिर गरीब जाये तो कहा जाये लाखों रुपए देकर डाक्टरी पढने की तो हैसियत है नहीं तो फिर इल्म इनके लिए किसी इल्जाम से कम नहीं.
वही बात करते हैं लाइन में लगे लोगों के लम्बे कतारों की चाहे दर्शन हेतु मंदिरों को ले लिया जाए या फिर किसी कोर्ट कचहरी को ले लिया जाए , लाचारों के लिए लाइनें अनिवार्य है ओर रइसों के लिए सिर्फ तुच्छ तमाशा क्योंकि पैसौ से कमाए हुए नाम तो इसी दिन के लिए काम आते है, और बेचारे मुफलिस तिलमिलाती हुई धूप में अपनी पारी के आने का इतेंजार करते हैं चाहे चार घंटे लगे या फिर दस घंटे कोई फर्क नहीं मुफलिस तो मुफलिस ही है न.
इतना ही नहीं, इस देश में कई बड़े और दिग्गज रइस ऐसे हैं, जो कई प्रकार के जुर्म करके खुलेआम घूम रहे हैं. फिर भी उन्हें कानून अपने शिकंजे में नहीं लेता, जबकि एक गरीब वैसे ही अपराध में सलाखों के पीछे नजर आता है. आखिर क्यों? क्या उनके लिए संविधान लागू नहीं होता.. ऐसा इस लिए होता है क्योंकि उनका नेटवर्क बडे़ बडे़ नामी में मशहूर है तो फिर बात ही क्या है "पापुलैरिटी इज इनफ" उनके लिए ये सिर्फ एक खेल है इससे ज्यादा कुछ नहीं.
मजदूरी के नाम पर भी इन मुफलिसों को ठेंगा देखने को मिलता है और सभी कुछ हड़प भी ले तो क्या हुआ इन रइसों के लिए कोर्ट कचहरी तो इनके बाप के पैसौ का बना हुआ प्रतीत होता हैं.
न जाने ऐसे कितने मुफलिस है जो हार मानकर अपने प्राणों की बलि दे दिए होंगे क्यों कि जग से पराजित हुए ये मुफलिस जब हर एक जगह से नाकाम हो जाते हैं तभी आकाल का जन्म होता है और ये बद से बदतर हालात में चले जाते हैं , इसलिए कहा गया है कि "गरीब और गरीब होते जा रहे हैं" , "अमीर और अमीर" पर झेलना तो सिर्फ मुफलिसों को ही है क्योंकि सारे नियम कानून सिर्फ और सिर्फ इनके लिए ही बनाए गए हैं..
धन्यवाद ??